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सिर्फ हमारे रोगियों के लिए : -

आवश्यक निर्देश

" चिकित्सा से मुख मोड़ना बिमारी को जटिल बना लेना है और कष्टमय जीवन जीते हुए परिवार पर बोझ बन जाना हैं."

जिस तरह कोई भी रोगी चिकित्सा कराकर मुक्त हो जाना चाहता हैं उसी तरह मैं भी रोगी को सेवा करना अपना कर्तव्य और रोग मुक्त करना अपना पावन धर्म समझता हूँ।

चिकित्सा के कुछ विधि होते हैं जिसके आधार पर चलकर कोई सदा के लिए रोग मुक्त हो सकता हैं। प्रायः ऐसा देखा गया है कि रोगी कुछ दिनों तक दवा का सेवन करते है तथा लापरवाही करते हुए इसे छोड़ देते है या अस्थिर चिन्त होकर इधर उधर भटकने लगते हैं। किन्तु हमारी पुरी इच्छा होती है कि रोगी सही रुप से स्थायी इलाज करावें और रोग मुक्त होकर दुसरों को भी उचित परामर्श और ठीकाना दें।

प्राय: सफेद दाग ही रोगियों द्वारा अनदेखी की जाती है जो कि अन्दर ही अन्दर आसाध्य बनकर रोग को पुरा शरीर में फैला देता हैं और अन्ततः वह रोगी कष्टमय ढंग से अपनी जिन्दगी जिते हुए अपनी इहलीला समाप्त कर लेता हैं।

    चिकित्सा के क्षेत्र मे चिकित्सा दो प्रकार के होते हैं।
  • (१) तत्कालिक चिकित्सा
  • (२) स्थायी चिकित्सा

(१) तत्कालिक चिकित्सा - इसके अन्तर्गत चिकित्सा तत्कालिक होती है। रोगी महसुस करता है कि वह ठीक हो गया है परन्तु शीघ्र ही लौट आता है और रोगी मासिक वेदना से पुनः पीडित हो जाता हैं। यह मुर्ति पर की गयी कच्चे रंग के समान होता हैं।

(२) स्थायी चिकित्सा - इस चिकित्सा मे रोगी को कुछ समय लगता है किन्तु वह सदा के लिए ठीक होकर पुनः सम्मानित और आनंदमय जीवन जीने लगता है। तो निश्चित ही कोई रोगी स्थायी चिकित्सा पसंद करेगा और चिकित्सक भी अपना धर्म कार्य पुरा कर लेगा।

स्थायी चिकित्सा के कुछ इस प्रकार हैं - रोग से पूर्ण छुटकारा पाने के लिए यह अति आवश्यक है कि आपके रोग के रोगानुसार जिस इलाज की दवा का सेवन करने के लिए आपको दिया गया है, उसका इस्तेमाल नियमित रुप से लगातार तब तक जारी रखना है जब तक की रोग पूर्णतः समाप्त न हो जाय। साथ ही बताये गे पथ एवं परहेज का भी पालन करते चल्ना है। इलाज मे नागा करना पुनः रोग को नये सिरे से शुरु करने के समान है क्योंकि नागा करने से दवाई का असर समाप्त हो जाता है। दवा की सेवन अवधि और लाभ क समय रोग के नये पुराने एवं जटिलता पर निर्भर करता है। प्रायः ऐसा देखा गया है कि किन्हीं रोगियों को एक पूर्ण कोर्स, किन्हीं को दो पूर्ण कोर्स, किन्हीं को चार पूर्ण कोर्स दवा सेवन करते- करते सफेद दाग जड़ से पूर्ण रुप से मिट गया है। कुछ रोगियों को ऐसा भी देखा गया है कि जिनका रोग कुछ पुराना हो गया है तो पांंच - छः पूर्ण कोर्स दवा सेवन करनी पड़ती है। कभी - कभी ऐसा भी देखा गया है कि गलत औषधियों के सेवन से दाग पर का चमड़ा मोटा हो जाता है और रोग जटिल बन जाता है तथा इअसके अलावे कुछ दाग ऐसे स्थानों के भी होते है जैसे- तलवा, तलहथी, होठ, स्त्री-पुरुष के जनेन्द्रिय अंग आदि, तो वे जटिल होते है, तो उन रोगियों को पांच - छः पूर्ण कोर्स दवा सेवन करने के बाद भी कुछ अंग मे दाग मितना बाकी रह जाते है, तो वैसी हालत मे घबड़ाना नहीं चाहिए और साहस पूर्वक लगातर कुछ दिनों तक और कोर्स दवा सेवन कर लेना चाहिए, ताकि जटिलत्तम दाग भी पूर्ण रुप से मिट जाय। दवा सेवन करने का आसान तरीका और नियमित रखने की विधि मै आपको बता रहा हूँ। आपको जिस तारिख को प्रथम कोर्स की दवा दी जायेगी उसके ठीक पंद्रवें दिन आपको द्वितिय कोर्स की दवा दी जाएगी। इस तरह हर पंद्रह - पंद्रह दिनों पर आपको दवा भेजते रहेगें। परिणाम स्वरुप कोर्स भी समाप्त हो जायेगा और आप इसे नियमित भी लेते रहेगें और आपको रोग से पूर्ण मुक्ति मिल जाएगी।

यह बहुत गर्व की बात है कि काफी खोज एवं अनुसंधान के बाद चर्म रोग, बावासीर की चिकित्सा पर पुर्ण सफल अधिकार प्राप्त कर लिया है। इससे अनगिनत लोग लाभान्वित हो चुके है दवा के नियमित सेवन से रोगी मार्यान्वित, गौरावान्वित, आनन्दित और लाभान्वित जीवन जी रहे हैं। हमारे चिकित्सो से वर्षो से पीडित रोगी सफेद दाग, एग्जिमा, सेहुली, छाई, दाद, दिनाय, खाज, खुजली, कील-मुहांसे इत्यादि चर्म रोग से पूर्ण रुप से ठीक हो गये हैं। मैं ने हर तरह के चर्म रोग के रोगियों क सफल उपचार तथा रोग मुक्त जीवन रोगी को दिया हैं।

इसके अलावा,महिला और पुरुष के सभी प्रकार गुप्त रोगों का सही ढंग से इलाज किया जाता है। इसलिए यह जरुरी है कि रोगी अपने किसी भी प्रकार के रोग की पूरी जानकारी भेजें।

वैद्य अश्वनी कुमार

(आयुर्वेदाचार्य)

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